Mahesh-Kumar-Haryanvi-Ke-Bhajan
Mahesh-Kumar-Haryanvi-Ke-Bhajan
नफरत का बनकर व्यापारी
क्यों पाप की करे कमाई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज गँवाई।।
ना दान दिया ना मान किया
मूर्खता पर अभिमान किया।
पैसा पैसा जोड़ जोड़ कर
हीरा जीवन बलिदान किया।
लालच के रंग में रज-रज कर
दिन रात करी चतुराई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज गँवाई।।
तुझको देख रहे रघुराई
तुझको देख रहे रघुराई।।
बचपन गया ज़वानी बीती
पुष्पित रीत सुहानी बीती।
पात-पात तुम्हें याद दिलाए
रह ना जाए गागर रीति।
हर लम्हा-लम्हा बीत रहा
समय देता नहीं दिखाई।।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज गँवाई।।
तुझको देख रहे रघुराई
तुझको देख रहे रघुराई।।
जब पाप का घोड़ा दोड़ेगा
रथ का पहिया मुख मोड़ेगा।
किए कर्म सभी आगे आएं
परिणाम न पीछा छोड़ेगा।
पगले राम नाम को रटले
हर कष्ट की एक दवाई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज गँवाई।।
तुझको देख रहे रघुराई
तुझको देख रहे रघुराई।।
नफरत का बनकर व्यापारी
क्यों पाप की करे कमाई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज गँवाई।।
कवि:
महेश कुमार हरियाणवी
झूक, महेन्द्रगढ़, 123029
9015916317
कृष्ण भजन ©
तुम्हें नित नए रंग में पूजें
सब रूप रूप से निराले।
ओह! गिरधर मुरली वाले
ओह गिरधर मुरली वाले।
तेज ने तेरे विश्व हिलाया
देव, गुरु, जन देख रहे थे।
हरि से मिलने हर घर आए
रसा रत्न रस बरस रहे थे।
रहे ममता के मतवाले।
ओह गिरधर मुरली वाले।
माखन खाकर मायाकर ने
कितनों की लाज बचाई थी।
प्रेम तत्व से तृप्त किया फिर
हार को जीत बनाई थी।
संगीत पे जगत नचाले।
ओह गिरधर मुरली वाले।
प्रीत में पावन मन भावन
आभा आपकी आप निराली
चाल-चलन की बात बताऊँ
पग-पग पर बिखरी हरयाली।
खिले प्रेम के रूप निराले
ओह गिरधर मुरली वाले।
बीच समंदर जा के अंदर।
द्वारका नगरी बसाई थी।
मथुरा को खुशहाल किया
वो, रघुवर की करुणाई थी।
खुद शांति आप सँभाले।
ओह गिरधर मुरली वाले।
इतिहासों के पन्ने बोलें
महाभारत जैसी सीख कहाँ
मैदा की धर्म विजय गाथा
दे गीता का उपदेश जहाँ।
रहे रथ की डोर सँभाले
ओह गिरधर मुरली वाले।।
तुम्हें नित नए रंग में पूजें
सब रूप रूप से निराले।
ओह! गिरधर मुरली वाले
ओह गिरधर मुरली वाले।।
युवा कवि:
महेश कुमार हरियाणवी
झूक, महेन्द्रगढ़, 123029
9015916317
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पाप की कमाई ©
नफरत का बनकर व्यापारी
क्यों पाप की करे कमाई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज गँवाई।।
ना दान दिया ना मान किया
मूर्खता पर अभिमान किया।
पैसा पैसा जोड़ जोड़ कर
हीरा जीवन बलिदान किया।
लालच के रंग में रज-रज कर
दिन रात करी चतुराई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज गँवाई।।
तुझको देख रहे रघुराई
तुझको देख रहे रघुराई।।
बचपन गया ज़वानी बीती
पुष्पित रीत सुहानी बीती।
पात-पात तुम्हें याद दिलाए
रह ना जाए गागर रीति।
हर लम्हा-लम्हा बीत रहा
समय देता नहीं दिखाई।।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज गँवाई।।
तुझको देख रहे रघुराई
तुझको देख रहे रघुराई।।
जब पाप का घोड़ा दोड़ेगा
रथ का पहिया मुख मोड़ेगा।
किए कर्म सभी आगे आएं
परिणाम न पीछा छोड़ेगा।
पगले राम नाम को रटले
हर कष्ट की एक दवाई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज गँवाई।।
तुझको देख रहे रघुराई
तुझको देख रहे रघुराई।।
नफरत का बनकर व्यापारी
क्यों पाप की करे कमाई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज गँवाई।।
कवि:
महेश कुमार हरियाणवी
झूक, महेन्द्रगढ़, 123029
9015916317
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(उजियारा है रब) ©
मैंने जब जब तुम्हें पुकारा हैं
संकट सब मिटा हमारा हैं।
प्रभु उनकी लाज बचा लेंगे
ईश्वर का जिन्हें सहारा है।
उजला सा उजियारा हैं रब
उजला सा उजियारा हैं।।
1)
नाम जपन का यत्न करो गर
कृपा तुमको मिल जायेगी।
तिनका तक का खर्च किए बिन
सन्तुष्टि दिल हर जायेगी।
पाप धुले इस आत्मा का जब
मिल जाता छुटकारा है।
प्रभु उनकी लाज बचा लेंगे
ईश्वर का जिन्हें सहारा है।।
उजला सा उजियारा हैं रब
उजला सा उजियारा हैं।।
2)
परमपिता की भक्ति में प्यारे
आनंदमयी सुख पाएगा।
अवसाद मिटेगा जीवन का
पुष्पित बन के लहराएगा।
दयानिधि उमगन के स्वामी
भक्ति ही लक्ष्य हमारा है।
प्रभु उनकी लाज बचा लेंगे
ईश्वर का जिन्हें सहारा है।।
उजला सा उजियारा हैं रब
उजला सा उजियारा हैं।।
3)
जन्म जन्म का फिरण जगत में
स्वरूप बदलता जाता है।
खड़ा बुलाए काल का घेरा
न जीव कोई बच पाता है।
भवसागर है गहरा सागर
रब आप ही तारणहारा है।
प्रभु उनकी लाज बचा लेंगे
ईश्वर का जिन्हें सहारा है।।
उजला सा उजियारा हैं रब
उजला सा उजियारा हैं।।
उजला सा उजियारा हैं रब
उजला सा उजियारा हैं।।..
कवि:
महेश कुमार हरियाणवी
झूक, महेन्द्रगढ़, 123029
9015916317
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नादान इंसान भजन ©
हम इंसान नादान है मालिक, तुम ही पार लगाना नैय्या।
बीच भँवर कहीं अटक न जाएँ, लाज बचाना नाथ खिवैया।।
हम दोषी हैं अवगुणधारी
सर पापों की गठरी भारी।
अरदास करें दर पे तुम्हारे
विनती सुनना आप हमारी।
कदम-कदम गहराए परछाई, राह दिखाना जगत रचैया।
बीच भँवर कहीं अटक न जाएँ, लाज बचाना नाथ खिवैया।।
हम घूम रहे बन व्यापारी
जेब में लेकर होशियारी।
आफ़त कष्टों की भारी है
नफ़रत से करते यारी है।
चित्त चंचल हो भटक रहा हैं, खन्न खन्न खन करे रुपया
बीच भँवर कहीं अटक न जाएँ, लाज बचाना नाथ खिवैया।।
हम नजरों के नज खोए है
खुद कर्मों के काँटे बोए है।
जीवन अब तो तेरे हवाले
हम भटको को राम बचाले।
बढ़ती जाए नहीं खुदगर्जी, माफी देना देख रवैया।।
बीच भँवर कहीं अटक न जाएँ, लाज बचाना नाथ खिवैया।।
कवि:
महेश कुमार हरियाणवी
झूक, महेन्द्रगढ़, 123029
9015916317
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कॉपीराइट नोटिस: सभी उल्लिखित गीत सामग्री कॉपीराइट हैं और सभी अधिकार कवि, महेश कुमार हरियाणवी, झुक द्वारा आरक्षित हैं।
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