मन में उपस्थित भय के भाव पर आधारित एक रचनात्मक कविता: डरने वाले इस दुनिया में, डर के क्या कुछ पाएगा। आसमान है खुला मगर, उड़ने वाला उड़ पाएगा। औजार सभी हैं दुनिया में, पथ ये धुँधला जाते हैं। जिसने कदम बढ़ाया आगे, राह वही बढ़ पाते हैं।। नया पुराना भेद बताना, बदल रहा रंग-रूप ज़माना। तेरा सपना तेरा बहाना, मंज़िल तेरी तेरा ठिकाना। जोखिम में मेहनत होगी पर, रिस्क में आनंद आएगा। आसमान है खुला मगर, उड़ने वाला उड़ पाएगा।। तेरी सोच में पुष्प समाए, जो तू चाहे वो मिल जाए। उम्मीदों के पँख लगे हैं, रोकने वाला रोक न पाए। अंदाज तेरा तुझसे प्यारे, झिझका तो मर जाएगा। आसमान है खुला मगर, उड़ने वाला उड़ पाएगा।। सन्नाटों से डर मत जाना, धुँध में धुलकर ख़ौफ़ न खाना नजरों की एक सीमा है, तुमको सीमा पार है जाना। जैसे-जैसे धूप खिलेगी, बादल खुद छट जाएगा। आसमान है खुला मगर, उड़ने वाला उड़ पाएगा।। काली काली छाई घटाएँ, अंबर की है अलग अदाएँ। बारिश भी गिरने को आई, धरती पे छपती परछाईं। ये सब मौसम के हैं नज़ारे, इन से ना बच पाएगा। आसमान है खुला मगर, उड़ने वाला उड़ पाएगा।। डरने वाले इस दुनिया में, डर के क्या कुछ पाएगा। आसमान है खुला मगर, उ...
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🎑विचारों की कमान🌷एकता महान🌷